Friday, August 20, 2010

कबीरा गरब ना कीजिये

हम सब प्रतिदिन ईश्वर से प्रार्थना करते है कि वह हमे काम , क्रोध , मोह ,ईर्ष्या ,द्वेष इत्यादि कुटिल भावनाओ से दूर रखे ,परंतु इसके लिए हमे अपने सच्चे मन से प्रयत्न करना होगा । अगर हम ईश्वर से यह माँगते है कि सरलता , निर्भयता , अहंकारशून्यता आदि भावनाए हमारी संपत्ति बने , तो इसके लिए और भी सच्चे मन से प्रयास करना होगा । क्रोध बुद्धि को नष्ट कर देता है और ऐसा होने से ही सर्वनाश हो जाता है । ईर्ष्या और वैर कि भावना निकाल दे तो शांति , आनंद और सुख मिलता है । जिन व्यक्तियों को हम दीन-हीन अवस्था मे देखते है , उनमे से अधिकांश किसी के व्यंग्य बाणों , किसी भयंकर आलोचना , जलन , डाह , क्रोध और बदले कि भावना के शिकार होते है । इसी प्रकार विचारो का प्रभाव छूत के रोगो के समान है। हमारे इन दुर्गुणों के मूल मे हमारा अभिमान है । इसलिए कबीर ने कहा :

कबीरा गरब ना कीजिये , ऊँचा देख निवास ।
काल्ह परे भुई लेटना ,ऊपर जमसी घास ॥