"कोई लौकिक और परलौकिक के बीच में जब
कोई आपका एकांत भंग कर दे तब जो आनंद आता है वही परमानन्द है - पदार्थ आपकी मांग नहीं - भोजन पानी शरीर को चाहिए । "
"अगर आपके पास धन नहीं तो प्रेम बाटिये, देते रहिये, क्या पता, ईश्वर ने
आपको निमित बनाया हो "
"कुछ लोग वातावरण ढूँढने जाते हैं, कुछ लोग वातावरण पैदा करते हैं"
वातावरण बना पाना गुरुवर अवधेशानन्द जी के ही वश में है.....
ReplyDeletebahut sahi kaha hai.
ReplyDeleteUsha ji,
ReplyDeleteSach kaha hai apne.
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ReplyDeleteगुरुवर के मुखारविंद से निकला हर शब्द अमृत बूँद....
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